अध्यापिका से नज़रें मिलाने की हिम्मत नहीं हुई हीरा की, लेकिन उनकी मौन स्वीकृति ने एक और ठप्पा लगा दिया कि सचमुच ऐसा ही हर घर में होता होगा।
महीना: दिसम्बर 2020
लेकिन फिर भी
है चूल्हे भर आग मेरी झोली में
लेकिन, फिर भी, सूरज की आशा करती हूँ
देखो, मैं अब भी सपने बुनती हूँ
बड़ी उलझन में बीता बचपन
प्रेम, करुणा, पोषण और आश्रय एक हाथ में
दूसरे हाथ से यातनाओं का बवंडर
बाँट रहा था वही पुरुष
लागी छूटे ना
दीपक की याद तो बहुत आती, लेकिन यह दुआ करने में उसके होंठ कांपते थे कि दीपक लौट आये। दीपक के लौट आने के ख़याल से मालती डर क्यूँ रही थी?