मन तू काहे शोक करे?

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कवि अमर है

कविता अमर है

उस वाणी की गूँज अमर है

मन तू काहे शोक करे?

शरीर रथ, आत्मा रथी

विवेक इसका सारथी

एक रथयात्रा पूर्ण हुई

मन तू काहे शोक करे?

चेतना उनकी है साथ तेरे

विचारों की थाती साथ तेरे

यादों की रिमझिम साथ तेरे

मन तू काहे शोक करे?

है प्रारब्ध बड़ा कि उनको देख सका

कुछ समय काल संग बीत सका

अब मुक्त करो उस बंधन से

कहीं वो लज्जित न हो इस क्रंदन से

कहते-कहते वो कह बैठा था

*“मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,  लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ? ”

फिर मन तू काहे शोक करे?

फिर मन तू काहे शोक करे?

  • “मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
    लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ? ” अटल बिहारी वाजपेयी जी की पंक्तियाँ

इमेज क्रेडिट: http://www.janprahari.com/atal-bihari-vajpai-travel-journalist-of-the-prime-minister/

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