जय उज्जैन! जय महाकाल! जय दाल बाटी! -१

यहीं से घुमक्कड़ी यज्ञ में आहुतियाँ शुरू हो जाती हैं । पढ़ाई-लिखाई तो चलती ही रहती है, अब कॉलेज बंक करने की शुभ घड़ी आई है ।

मैं हूँ ना, माँ

इतनी स्वार्थी….इतनी बीमार हो गयी मैं? मेरी बेटी स्कूल जाकर भी इस ख़याल से छूट नहीं पायी कि माँ ने उससे कहा ,’ तुम्हें पता है माँ बीमार है फिर भी तंग करती हो’ । बालमन पर यह कैसा बोझ रख दिया मैंने अनजाने में ?

रैगिंग के वो दिन

यह मुखिया लोग जो बड़े सरकार के सामने ‘हम वो हैं, जो दो और दो पांच बना दें’ ऐसी डींगें हांक कर आये थे, उनका हमारी एक गलती ने फ़ालूदा बना दिया था । और इसके लिए हमे माफ़ी मिलना नामुमकिन था ।

कैसी ज़िद्द

कीमत में यह दर्द और ज़हर है तो
हर रोज़, हर पल पीना है मुझे
फिर क्यूँ भुला दूँ तुझे?