माँ सरस्वती, प्लीज़ अपने कमल से मत उठिए

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माँ, गाना चेंज कर दो । माँ, माँ, माँ…गाना चेंज कर दो ना, प्लीज़ । गाड़ी की पिछली सीट से 4 साल की अंकिता ड्राइविंग सीट पर बैठी अपनी माँ, श्रेष्ठा, से कह रही थी । श्रेष्ठा कभी-कभी ही गाड़ी ड्राइव करती है और ट्रैफिक बढ़ जाये तो वो सड़क और गाड़ी के अलावा कुछ न सुनती है, न देखती है और न बोलती है । पूरी तन्मयता से, भरपूर टेंशन में बस गाड़ी ड्राइव करती है । नन्हीं अंकिता यह सब समझने के लिए बहुत छोटी है । अपनी बात को अनसुनी होते देखकर धीरे-धीरे वो अब चिल्लाने पर आ गयी, ’माँ, माँ….. ‘। अंकिता के साथ उसका 7 साल का भाई अरुण भी बैठा है और अंकिता के चिल्लाने से परेशान होते हुए बोला, ‘ऐसे मत तंग करो माँ को, हम लोगों का एक्सीडेंट हो जायेगा’ । श्रेष्ठा जो अब तक चुप थी अचानक कड़क अंदाज़ में बोली, ‘बहुत बोल रहे हो अरुण, थोड़ा अपने आप में रहो’ । शायद अरुण की बात में श्रेष्ठा का टेंशन मुखर हो गया था । श्रेष्ठा जिस बात से डर कर किसी और बात पर ध्यान नहीं दे रही थी वो अरुण ने शब्दों में कह दिया था । फटकार सुनकर अरुण और अंकिता दोनों चुप हो गए । और श्रेष्ठा फिर से गहरे टेंशन में गाड़ी चलाने लगी ।

मैं जो श्रेष्ठा के साथ वाली सीट पर बैठी हूँ, पलटकर देखती हूँ तो अरुण कुछ दुखी था शायद मेरी मौजूदगी में डांट दिया गया इसलिए । दोनों बच्चे कुछ डरे हुए हैं और अरुण कुछ बेचैन सा भी लगा । श्रेष्ठा की फटकार ने कहीं उसको यह जताया कि अगर ऐसा कुछ हो गया तो जिम्मेदार शायद अरुण होगा । क्यूँकि कभी-कभी माँ सरस्वती अपने कमल को छोड़कर जिह्वा पर आ विराजती हैं, ऐसा मत हमारी संस्कृति में प्रचलित है । इसी मत के तहत बुरी बातें कहने को अक्सर मना किया जाता है । अरुण को इस मत का तो ज्ञान नहीं है लेकिन किसी बुरी आशंका को कहने के बाद श्रेष्ठा के इस पैटर्न को वो पहचानता है ।

सब लोग चुप हैं और गाड़ी में कोई गाना भी बज रहा है, लेकिन मैं इस सोच में डूब गयी हूँ कि इस फटकार, इस पैटर्न का दूरगामी प्रभाव क्या है? आज अरुण ने कुछ ग़लत नहीं कहा था । उसने एक परिस्थिति का आंकलन किया था और क्या परिणाम हो सकता है यह कहा था । उसमें आंकलन की क्षमता आ रही है, अपने आस-पास की परिस्थितियों को परखने की क्षमता आ रही है । छोटी अंकिता जो यह नहीं कर सकती वो उसे समझाने की कोशिश कर रहा था । शायद वो अपनी माँ का डर, टेंशन भी समझ रहा था और वो अपनी माँ की मदद करने की कोशिश कर रहा था । इन तमाम कोशिशों के बदले फटकार मिले तो बच्चे के मन पर उसका क्या प्रभाव होगा ?

मैंने खुद महसूस किया है कि कठिन परिस्थिति आने पर कभी-कभी एक अनजाना सा डर घेर लेता हैं मुझे । मैं ठीक-ठीक समझ नहीं पाती या शब्द नहीं दे पाती उस डर को । यह डर मुझे उस कठिन परिस्थिति से पलायन करने को अमादा करता है और अगर पलायन न करा सके तो उसे टालते रहने का सहारा तो ज़रूर देता है । लगभग हम सब कभी न कभी यह अनुभव कर चुके हैं कि हम मुश्किल काम को टालते रहते हैं, किसी न किसी बहाने की आड़ में । दरअसल हम अपने डर की चादर में उकडू बने बैठे होते हैं । क्यूंकि हम अपनी कठिन परिस्थितियों का बिना डरे आंकलन करना धीरे-धीरे भूलने लगते हैं । बुरी संभावना को पहले कहना बंद करते हैं और धीरे-धीरे आंकलन की क्षमता भी खो बैठते हैं । केवल ‘गट फीलिंग’ से काम चलाते हैं । एक बार फिर पलटकर अरुण की तरफ़ देखा तो उसमें मुझे वो बचपन नज़र आया जो आंकलन कर सकता है । और जीभ पर सरस्वती के होने के कारण अनिष्ट हो जायेगा इस सोच से परे अपने डर कह सकता है । अगर यह स्किल प्रगति करती रही तो, वो अपने आंकलन के अनुसार अपने डर और संभावनाओं में ठीक समीकरण बिठा पायेगा और बेहतर फ़ैसले लेगा । मुझसे बेहतर इंसान बन सकेगा ।

बच्चे किसी बात पर बहुत देर टिके नहीं रहते, दोनों बच्चे पीछे किसी बात पर हंस रहे हैं और गाड़ी सड़क पर बढ़ती जा रही है । श्रेष्ठा पूरा मन लगाकर गाड़ी चला रही है । श्रेष्ठा इतने टेंशन और चुनौती भरे ट्रैफिक का सामना कर रही है कि उसके पास यह सब सोचने का स्कोप ही नहीं है । इस समय अपने बच्चों को सही सलामत घर पहुँचाने से ज्यादा ज़रूरी उसके लिए कोई बात हो ही नहीं सकती । सही सलामत घर पहुंचकर किसे याद रहेगा इस बारे में बात करना । मेरे मन में एक काँटा सा चुभ रहा है, अरुण मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकी बेटा, इसका मुझे अफ़सोस है । पर एक स्वार्थी माँ ने उस दिन यह सीख लिया कि अपनी बेटी के साथ मैं ऐसा कभी नहीं करूँगी । वो आज़ाद रहेगी ऐसे मतों से और ऐसी डांट से ।

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